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पूर्ण गुरु के लक्षण

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पूर्ण गुरू के क्या लक्षण होते हैं?  ‘‘गुरु के लक्षण (पहचान)’’ परमेश्वर कबीर जी ने ‘‘कबीर सागर’’ के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध’’में पृष्ठ 1960(2024) पर गुरू के लक्षण बताऐ हैं। गुरू के लक्षण चार बखाना। प्रथम वेद शास्त्रा का ज्ञाना(ज्ञाता)।। दूसरा हरि भक्ति मन कर्म बानी। तीसरा सम दृष्टि कर जानी।। चौथा बेद विधि सब कर्मा। यह चारि गुरू गुन जानों मर्मा। भावार्थ :- जो गुरू अर्थात् परमात्मा कबीर जी का कृपा पात्रा दासगुरू पद को प्राप्त होगा, उसमें चार गुण मुख्य होंगे।‘ ‘प्रथम बेद शास्त्रा का ज्ञाना (ज्ञाता)’’ 1-  वह सन्त वेदों तथा शास्त्रों का ज्ञाता होगा। वह सर्व धर्मों केशास्त्रों को ठीक-ठीक जानेगा। ‘‘दूसरा हरि भक्ति मन कर्म बानी’’ 2- वह केवल ज्ञान-ज्ञान ही नहीं सुनाऐगा, वह स्वयं भी परमात्मा कीभक्ति मन कर्म वाचन से करेगा। ‘‘तीसरे समदृष्टि करि जानी’’ 3- सर्व अनुयाइयों के साथ समान ब्यौहार करेगा, वह समदृष्टि वालाहोगा।  ‘‘चौथा बेद विधि सब कर्मा। यह चारि गुरू गुन जानों मर्मा‘‘ 4- चौथा लक्षण गुरू का बताया है कि वह सन्त वेदों में वर्णित भक्तिविधि अनुसार साध